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Madhushala (मधुशाला)

Madhushala (मधुशाला)

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हरिवंशराय ‘बच्चन’ की अमर काव्य-रचना मधुशाला १९३५ से लगातार प्रकाशित होती आ रही है | सूफियाना रंगत की १३५ रुबाइयों से गूँथी गई इस कविता की हर रुबाई का अंत ‘मधुशाला’ शब्द से होता है | पिछले आठ दशकों से कई-कई पीढ़ियों के लोग इसे गाते-गुनगुनाते रहे हैं | यह एक ऐसी कविता है, जिसमें हमारे आसपास का जीवन-संगीत भरपूर आध्यात्मिक ऊँचाइयों से गूँजता प्रतीत होता है | मधुशाला का रसपान लाखों लोग अब तक कर चुके हैं और भविष्य में भी करते रहेंगें, लेकिन यह ‘कविता का प्याला’ कभी खाली होने वाला नहीं है

ISBN No. :9788170283447
Binding :Hard Bound
Pages :77
Language :Hindi
Edition :68th/2016 - 1st/1935
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